स्वर्ग नरक सब यहीं है
स्वर्ग नरक किसने देखा है,सब यही हैं
सब कुछ होते हुए भी कोई खुश नहीं है
खाली हाथ होते हुए भी कोई दिल से अमीर है
सुख,दुख,अमीर,ग़रीब,रोग,अहम्,द्वेष,पाप,पुण्य सब स्वर्ग नरक ही हैं ..
पतंग की डोर सा है हमारा जीवन
यदि संस्कारों की डोरी को ढील दे दी
तो कौन सी भी दिशा में निकल जाएँ
जीवन नरक ही बन जाएगा
यदि संस्कारों की डोरी को ज़्यादा खींच दिया
तो भी जीवन नरक से कम नहीं रहेगा..
संस्कारों का संतुलन ही जीवन को स्वर्ग बनाएगा
यदि उस समय जीवन की पतंग कटकर कहीं चली भी गई
तो भी हवा उसे उड़ाकर सही राह ही ले जाएगी
फूल और काँटे सब हम स्वयम् ही बिछाते हैं
वही स्वर्ग नरक बनकर ही हमारे पास लौटते हैं ..
वन्दना सूद