दुनिया का बाज़ार
क्या अपने क्या पराए
सब बट गए इस दुनिया के बाज़ार में
कुछ चढ़ गए मोल भावनाओं के
कुछ ने मोल कमाया तजुर्बों का
कुछ मोल लगा नई-पुरानी पीढ़ी का
और कुछ स्वार्थी भी हुए हैं मालामाल
कुछ नहीं बिकता बिना मोल इस दुनिया के बाज़ार में..
वो कंधा जिस पर सिर रखकर आंसू बहाए
हाथ थाम कर जिससे सहारा लिया
हर मुश्किल पल में जिसे अपने साथ सदा खड़ा पाया
वक़्त सुधरते ही अब उनसे शिकायत रखते हैं
आज उनकी खूबियों में ख़ामियाँ देखते हैं
आज अनमोल से उनका मोल पूछते हैं
आज हर वो शख़्स अकेला है,जिसने सबका दुख बाँटा हैं
कैसा हो गया आज इंसान, दर्द किसी ओर से और रिश्ता किसी दूसरे से निभाता है
इसलिए इंसानियत ही बची है जिसका कोई ख़रीदार नहीं इस दुनिया के बाज़ार में ..
वन्दना सूद