मेरा हार जाना मुक़र्रर था,
और ये सब होगा ,मुझे मालूम था।
मुसलसल हार पर हार मिलती रही मुझे,
फिर भी मेरा मिज़ाज ख़ुश-मिज़ाज था......✍
कोशिश मेरी मुख़्तसर रह गई थी,
शायद वजह यही मेरी नाकामयाबी की रह गई थी।
गुस्ताख़ी करती रही कोशिश करने की,
पर मुक़द्दर में तो मेरे
नाकामयाबी ही लिखी गई थी........✍
इस्तिक़बाल किया अपनी हर हार का मैंने खुशी से,
और सज्दा भी किया तह -ए -दिल से।
यूं हर मर्तबा हार जाने से मन में कुछ ख़लिश तो थी,
पर कहा नहीं मैंने कभी भी किसी से........✍
🌼🌼"रीना कुमारी प्रजापत"