एक लहर हूँ, किनारे की तलाश है,
पानी से न बुझी ज़हर की प्यास है।
भँवर कोई डुबोए, घबराना क्यों,
अरे ! अपने हुनर पे विश्वास है।
दर्द-ए-हिज़्र में डूबा हुआ आदमी,
वो तो चलती - फिरती लाश है।
अब तक जिंदा हो तुम यादों में,
ये तो मेरे दिल के अहसास हैं।
न पाना ही तो सच्ची मुहब्बत है,
मेरी दीवानगी तो मेरे ही पास है।
🖊️सुभाष कुमार यादव