जिंदगी
और
बहती हुई नदी
एक जैसी हैं
दोनों ही
ऊँचे नीचे
टेड़े मेढे
अच्छे बुरे
पाप पुण्य
तन मन धन
आज कल
प्रेम घृणा
के बीच
अनवरत
बहती रहती हैं.
जीवन मृत्यु दोनों
इनके किनारे हैं
कभी आसानी से
नहीं मिलते
और जब
इनके दोनों किनारे
मिलते हैं तो
नदी गुम हो जाती है
दरिया में मिल जाती है.
ठीक ऐसे ही
जिंदगी के दोनों
किनारे मिलते ही
जिंदगी भी ख़ुद
अंतर्धान होकर
अनन्त में
विलीन हो जाती है।
और रह जाते हैं
कुछ अवशेष
कुछ यादें बस.
इसलिए
जिंदगी एक
बहती हुई नदी है
और
बहती हुई नदी
एक जिन्दगी है!