चाँद तारो को समझ पाए मगर तुम्हे नही।
मुश्किल से दिमाग को पढ पाए तुम्हे नही।।
कितने ख्याल अधपके है कितने पक चुके।
पहचान कर हकीकत गढ पाए तुम्हे नही।।
कब अपनी कब पराई तकरारो के दौर में।
तर्क-वितर्क समझ पाए 'उपदेश' तुम्हे नही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद