New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

स्व धर्म से प्रेम कर

बदल धर्म अपने मूल का न जी
जन्म मिला जिसमे छोड़ कर न जी
माँ के गर्भ में जिसने सींचा है तुझे
उस संस्कार को छोड़ कर न जी

बसा है तेरी रग रग में तेरे मूल में
उसकी चाह पैदा हुआ तू इस धुल में
इसी में फूटा अंकुर तेरा प्राण तेरा
हो जयेगा राख मिला जो और धुल में

छोड़ धर्म दिया जो मिलकर तुझे
तेरे माता पिता ने अलग क़र तुझे
अपने ही खून के कतरों के धर्म
से किया सजीव मिट कर तुझे

तेरा धर्म ही तेरा कर्म है न छोड़ इसे
दिया ईश्वर ने जो जन्म न छोड़ इसे
है आस्था अगर तेरी इतनी ही धर्म में
मिला है जो जन्मों से धर्म न छोड़ इसे

स्व धर्म में पीड़ा झेलता है तू अगर
अनजान धर्म शरण है पड़ा तू अगर
न उठाता पीड़ा संकट अनगिनत
रखता निष्ठा स्व धर्म में अटूट तू अगर

अंतस में अचेतन में बसा है जो धर्म
खून की बून्द बून्द में बसा है जो धर्म
छोड़ कर उसे कैसे मिलेगी तुझे मुक्ती
तेरे तन मन में जन्मों से बसा है जो धर्म

कर इज्जत हर मत की हर पथ की मगर
न छोड़ भूल कर कभी स्व धर्म की डगर
जिस पथ पर चला जिस मत पर पला
चाह उसी पथ पर रख मरने की मगर




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Sanjay Srivastva said

उम्दा प्रसंग👌

Devender Kumar replied

thanks a lot

वन्दना सूद said

न छोड़ स्व धर्म की डगर 👏👏👌👌बहुत ही सुन्दर message

Devender Kumar replied

thanks a lot

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन