बदल धर्म अपने मूल का न जी
जन्म मिला जिसमे छोड़ कर न जी
माँ के गर्भ में जिसने सींचा है तुझे
उस संस्कार को छोड़ कर न जी
बसा है तेरी रग रग में तेरे मूल में
उसकी चाह पैदा हुआ तू इस धुल में
इसी में फूटा अंकुर तेरा प्राण तेरा
हो जयेगा राख मिला जो और धुल में
छोड़ धर्म दिया जो मिलकर तुझे
तेरे माता पिता ने अलग क़र तुझे
अपने ही खून के कतरों के धर्म
से किया सजीव मिट कर तुझे
तेरा धर्म ही तेरा कर्म है न छोड़ इसे
दिया ईश्वर ने जो जन्म न छोड़ इसे
है आस्था अगर तेरी इतनी ही धर्म में
मिला है जो जन्मों से धर्म न छोड़ इसे
स्व धर्म में पीड़ा झेलता है तू अगर
अनजान धर्म शरण है पड़ा तू अगर
न उठाता पीड़ा संकट अनगिनत
रखता निष्ठा स्व धर्म में अटूट तू अगर
अंतस में अचेतन में बसा है जो धर्म
खून की बून्द बून्द में बसा है जो धर्म
छोड़ कर उसे कैसे मिलेगी तुझे मुक्ती
तेरे तन मन में जन्मों से बसा है जो धर्म
कर इज्जत हर मत की हर पथ की मगर
न छोड़ भूल कर कभी स्व धर्म की डगर
जिस पथ पर चला जिस मत पर पला
चाह उसी पथ पर रख मरने की मगर