मैं जो भी कहूँगा,
सच-सच ही कहूँगा !!
सच के सिवा,
और कुछ भी न कहूँगा !!
क्या यह कथन सचमुच,
सच्ची नीयत पर आधारित है..
यह अत्यन्त सोचनीय विषय है !!
अदालत और सदन के दीवारों से,
टकराते ये वो शपथ हैं !!
जो सिर्फ शपथ है या कुछ और,
यह अत्यन्त सोचनीय विषय है !!
क्या ऐसा कहने भर से...
युधिष्ठिर की आत्मा,
समा जाती है..या हरिश्चन्द्र की !!
यह अत्यन्त सोचनीय विषय है !!
काश शपथ सच्ची नीयत पर,
आधारित हो !!
सिर्फ बचाव के लिए या,
मात्र औपचारिकता नहीं !!
क्या सच में ऐसा हो पायेगा..
ये आज भी सोचनीय विषय है !!
अगर शपथ गलत नीयत से,
बोला जाये तो..
इसकी भी एक सज़ा होनी चाहिए क्या कोई सजा मुकर्रर भी होगी ??
ये अत्यन्त ही सोचनीय विषय है !!
हम जो शपथ लेते तो उसे निभाते भी,
ये कितना अच्छा होता न !!
न ही कोई पक्षपातपूर्ण रवैया होता राजनीति में..
या सभी न्याय के मंदिर में !!
अपने देश,समाज के प्रति,
शपथ लेकर आखिर मुकर क्यों जाते हैं हम,
ये अत्यन्त ही सोचनीय विषय है !!
सर्वाधिकार अधीन है