श्रीमती जी को स्टेशन छोड़ने गया था मैं ! ट्रेन राइट टाइम से आधे घंटे लेट चल रही थी और हम स्टेशन लगभग राइट टाइम में पहुँच चुके थे !
टी स्टाल में चाय पीने के बाद हम इत्मीनान से बैठे हुए थे एक दूसरे का सिंपल हाल-चाल पूछते !
लगातार निर्दश जारी था उनके द्वारा कि समय पर खाना खा लीजियेगा और दवाई भी और वगैरह-वगैरह !!
दरअसल श्रीमती जी की मम्मी की तबियत ठीक नहीं थी और वो अपनी मम्मी जी से मिलने जा रही थीं अपने मायके यानि मेरी ससुराल !!
मेरा चुनाव ड्यूटी लगा हुआ था जिसकी वजह से मैं चाहकर भी साथ नहीं जा पा रहा था !!
तभी मेरा एक पुराना मित्र दिखा और उसने भी मुझे देख लिया !!
मैं उसके स्वागत के लिए खड़ा हुआ और हाथ मिलाते हुए अपनी श्रीमती जी से उसका परिचय भी करवाया !!
सच कहूँ तो मुझे उस दोस्त से मिलकर बहुत ही ज्यादा खुशी हुई !!
और हो भी क्यों ना ..लगभग 15 साल के बाद मुलाक़ात हुई थी आज उससे !!
मैं उससे कुछ और बात करना चाह रहा था इधर-उधर की ..अपने काॅलेज लाइफ की !!
मगर वो था कि सीधे प्वाइंट पे आ गया और बोला कि मैं एक नेटवर्किंग से जुड़ा हूँ..फिलहाल अभी मैं लाखों में खेल रहा हूँ !!
तू भी जुड़ जा और भाभी को भी जोड़ दे इसमें..
माँ कसम यार ,तू भी क्या याद करेगा मुझको ..तू मेरा फास्ट फ्रेंड है इसलिए मैं तेरे को जोड़ रहा हूँ !!
मैंने उसे टरकाने के लिए बस इतना ही कहा- तू अपना नंबर दे दे..फिर इत्मीनान से बात कर लेंगे !!
ट्रेन आ चुकी थी ..मेरी श्रीमती जी अपनी बोगी में चढ़ भी चुकी थी !!
मगर उस दोस्त की बक-बक अभी भी जारी थी !
वो बोलते-बोलते चढ़ा कि मैं अभी ट्रेन में भाभी को कन्वियेन्स कर लूँगा फिर नेटवर्क में जोड़ भी लूँगा !
फिर तू भाभी के नीचे जुड़ जाना !
करोड़ों में खेलेगा बेटा करोड़ो में !
वो टाटा, बाय-बाय करके ट्रेन में सवार हुआ और मैं ट्रेन को अपनी नज़रों से ओझल होते हुए देखता रह गया !!
बस एक ही सवाल चल रहा था दिमाग में मेरे कि...क्या हो गया है आजकल लोगों को ??
करोड़ो कमा के आखिर करना ही क्या है ??
क्या दोस्ती का वो क्रेज चला गया जिसकी वजह से हमें जीने का मजा आता था !!
दुखी था मैं कि उस बेवकूफ की वजह से अपनी पत्नी को मैं ठीक से हाय-हेल्लो तक नहीं बोल पाया !!
समझ नहीं आता..
आख़िर ये कैसी दोस्ती ??
लेखक : वेदव्यास मिश्र
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