दिल्लगी की क़ीमत इतनी भारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी,
एक मुस्कान में लिपटी ख़ुमारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
तेरे झूठ पे हँसी थी जो आई — वो रुलाई में बदल जाएगी,
मेरे चुप रहने की भी सवारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
तू जिसे खेल समझ बैठा था, वो मेरा इबादत-सा सच्चा था,
इस इश्क़ में भी एक अदबदाहट सारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
मैंने जिस दिल में तेरा नाम लिखा — वो ही दिल नीलाम हो गया,
तेरे एक ‘क्या फ़र्क़ पड़ता है’ में शिकारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
तू तो गया यूँ जैसे मैं कोई बेमतलब सी बात रही,
पर तेरे जाने में भी मेरी खुद्दारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
अब जो आईना देखती हूँ तो हँसी आती है खुद पे,
कि तेरे जैसी अदाओं में भी कोई दुनियादारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।
और हाँ —
अब तुझसे मोहब्बत नहीं, पर तेरा तिरस्कार प्यारा है,
कभी-कभी नफ़रत में भी गुलज़ारी होगी — ये सोचा नहीं था कभी।