कविता: परमानंद ढूंढ
दिनांक:05/08/2025
परमानंद ढूंढ रहा जग में जीवन सुखी संसार है।
अध्यात्म द्वार परम सुख का आनंदित भंडार है।
मानव जन्म सफल हो सबका ईश्वर का प्यार है।
मुख से बोलना शब्द तुले मोक्ष तृप्ति का द्वार है।
इक काया से दुजी काया में जाना ही बेकार है।
लोभ मोह माया का चक्कर लगता बारम्बार है।
माया मोह चक्र में मानव करता रहता व्यापार है।
प्रभु दर्शन आराधना मन में कुशलता व्यवहार है।
आत्मा का परमात्मा से मिलन सबको स्वीकार है।राम नाम में परमानन्द ढूंढ रहा भक्तों का संसार है।
जैसी करनी वैसी भरनी ये त्रिपुरारी का दरबार है।
त्रिलोकी के स्वामी हमारे हमको उन्हीं से प्यार है।
परमानन्द मिल जाता हमको होता साक्षात्कार है।
प्रभु दर्शन करने से हमे मिलता मोक्ष का द्वार है।
परमानंद ढूंढ रहा जग में जीवन सुखी संसार है।
अध्यात्म द्वार परम सुख का आनंदित भंडार है।
सत्यवीर वैष्णव बारां राजस्थान
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