खामोशी में जो आवाज बन कर उभरे।
डराने का तरीका न गया वो नही सुधरे।।
किस्मत को ठुकरा कर दिल में बस गए।
मेरी निगाह से दिलबर कभी नही उतरे।।
अब वो चेहरा नही एक एहसास मन में।
मेरे बारे में भी होंगे विचार साफ सुतरे।।
कभी धड़कन कभी दर्द कभी दुआ में।
खुदा महफ़ूज़ रखे उनके पंख न कुतरे।।
बहते आँसुओं में भी जो मुस्कान भर दे।
बचा कर रखे 'उपदेश' बदनीयत ख़तरे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद