जब मैंने ग्रेज्यूशन कर पोस्ट ग्रेज्यूशन में प्रवेश पाया,
भाषा सीखने की कठिनाईयों का दृश्य सामने आया।
ग्रामीण परिवेश और अंग्रेजी साहित्य का विरोधाभास,
समझ में कुछ नहीं आता तब अटक जाती थी सांस।
भार्गव डिक्शनरी में साहित्यक शब्द सटीक नहीं पाते,
अंग्रेजी साहित्य पढ़ने के शौक के तब फाख्ता उड़ जाते।
सात समंदर पार की भाषा गांव में पढ़ना कठिन था,
ऊपर से पढ़ने का शौक पर अंदर से कुंठित मन था।
लेकिन पढ़ने के जज्बे के आगे सबने ही हारी मानी ,
अंतःकरण में निहित फिर हमने निज शक्ति पहचानी।
रातों रात दीपक व मेरे बीच में जागने की होड़ चलीथी,
दीपक ने नहीं छोड़ा साथ और मुझे ही जीत मिली थी।
कितना भी कठिन समय आखिर में तो कट ही जाता है,
कैसा भी घोरअंधेरा हो आखिर में तो नव प्रभात आता है।
कोलम्बस, वास्कोडिगामा ने कितने ही कष्ट उठाये थे,
अमेरिका की खोज करके नयी दुनिया लेकर आये थे।
वीरवृती और दृढ़संकल्पी बाधाओं से कब डरते हैं,
घोर अंधेरी रातों से ही आशा के सूरज चमकते हैं।
----बीपी सिंह यादव