वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार
मालिक की कभी डांट कभी खाए मार
वेटर विवाह शादी में करने काम जाते
वहाँ जा कर वेह न पीते न कुछ खाते
हर जन कि सेवा करते रहते
भूख प्यास और पीडा वेह सब सहते हैं
सभी गरीब किसी काे न मिले आधार
वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार
भूख के कारण यदि काेई चाेरी-छिपे खाता
बदले में इसके मार बड़ी पाता
करे क्या फिर बेचारा सुबक-सुबक राेता
ऐसा हर राेज हर केटरिंग में हाेता
उनके साथ कब तक चलेगा ये दुर्ब्यभार
वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार है
कैसा जमाना यहाँ का आज हाए
कर -करके सेवा भी इज्जत न पाए
बेचारा वेटर जाए ताे कहां किधर जाए
कभी गेष्ट कभी हाेष्ट की फिर मार खाए
वेह भी आदमी हैं क्याें नहीं करते उनसे प्यार
वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार
रात भर कर करके काम घुटता जाए दम
वेटराें की दिहाड़ी भी मिलता बहुत कम
चैन आराम बहुत उनसे दूर है
आज का वेटर बड़ा मजबूर है
पसीने से वेटराें की बने मालिक ठेकेदार
वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार
वेटराें की जिन्दगी भी है बड़ी बेकार .......
----नेत्र प्रसाद गौतम

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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