दिल कहता है,
कहता रहता है,
कुछ लिख ले,
और कुछ पढ़ ले,
मन करता है,
करता रहता है,
कुछ करले,
धन दौलत पा,
समझ नहीं आता,
क्या करना?
सुनु दिल की या मन की,
लिखना पढ़ना भी है ज़रूरी,
और ज़रूरत भी धन की।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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मन करता है,
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कुछ करले,
धन दौलत पा,
समझ नहीं आता,
क्या करना?
सुनु दिल की या मन की,
लिखना पढ़ना भी है ज़रूरी,
और ज़रूरत भी धन की।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'