बेटी खुशहाल घर में जलन लोगों में बढ़ी।
रिश्तेदारो को भनक इसकी देरी में पडी।।
बड़ी नाजुक घड़ी खुशियाँ भी दर्द उनका।
कदम कदम पर इम्तिहान असमंजस बढ़ी।।
लड़ाई है मन भेद की जीतना कठिन इसे।
नेकी करके कुँए में फेंकने की संशय बढ़ी।।
सब को लेकर साथ चलाना बेहतरीन होगा।
इस पर भी राजी नही 'उपदेश' शक बढ़ी।।
ज़ख्म ताजे हो मरहम की जरूरत पड़ती।
हमदर्द चाहिए शायद मिलेगा आशा बढ़ी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद