धूल और बच्चे।।
उड़ी उड़ी देखो आसमान में,
उन नन्हे पांवों से,
घर की तरफ जा रहे हैं,
यह पूरी मंडली है,
घर पर कदम और धूल के निशान,
मां की डांट फिर से,
देखो लल्ला कहा ना तुमसे पैरों को गंदा ना करो,
आंगन साफ किया है,
धूल का अमुक चेहरा और बेचैनी,
मगर बच्चों से लिपटने का आनंद,
अब यह बच्चे ही तो है जो मुझे गले लगाते हैं,
मेरा महत्व समझते हैं,
इस यांत्रिकता ने मेरे होने की आकांक्षा को खत्म किया,
धीरे-धीरे बच्चे भी घर तक सीमित है,
शारीरिक हलचल कम है,
प्राकृतिक वैभव का गला घोट चुके हैं,
यह धूल भी धूल ही है,
पड़ी रही एक कोने में,
हवा है मगर दम घुटा दे ऐसी,
धूल और धूल की विरासत धूल में ही रह गई,
बच्चे बंद कमरों में,
आंखों की पुतलियों को किराए पर लेकर,
हाथों की सिकुड़न,
पैरों की जड़ता,
सूनेपन की आंधी,
बाहरी जीवन खत्म,
जीवन बर्बाद,
धूल और बच्चे जमीन पर कम है,
आसमान की औंधी रोशनी,
समय कम,
संघर्ष कम,
जीवन कम।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




