धोखा
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
मीठे वचनों की चाशनी में घुला,
विश्वास का सुन्दर मुखौटा था खुला।
आँखों में चमक थी, जैसे सच्चा हो प्यार,
पर भीतर छुपा था, छल का अँधियार।
धीरे-धीरे बुना गया, यह कपट का जाल,
सच्ची भावनाओं पर डाला गया काल।
हर बात में लगती थी मिठास भरी,
पर नींव में बैठी थी, धोखे की कड़ी।
जब पर्दा हटा, तो दिखा असली रूप,
विश्वास के शीशे पर पड़ी गहरी खुरूप।
वो सारे वादे, वो कसमें झूठी निकलीं,
जैसे रेत के महल हों, पल में ही पिघलीं।
दिल में उठी एक कसक, एक गहरा सा घाव,
अपनों ने ही दिया, ये कैसा अभाव।
आँखों से बहते आँसू, पूछते हैं सवाल,
क्यों खेला गया ये, झूठ का ऐसा बवाल?
अब याद आती हैं वो बातें, वो मुस्कान,
जिनके पीछे छिपा था, इतना बड़ा नुकसान।
धोखे की ये पीड़ा, सहनी है अकेले,
टूटे हुए सपनों के, अब सिलने न वेले।
सीखा है सबक अब, हर चेहरे को पढ़ना,
दिखावे के पीछे के सच को भी गढ़ना।
पर दिल में रहेगी ये टीस उम्र भर,
अपनों का धोखा था, सबसे कठिन डगर।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




