👉बह्र - बहर-ए-मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
👉 वज़्न - 221 2121 1221 212
👉 अरकान - मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
कब देख दर्द गैर का रोता है आदमी
अपने ही गम पे पलकें भिगोता है आदमी
देता है साथ जो भी गिराता उसी को है
हद से ज़ियादा मतलबी होता है आदमी
इस जिंदगी के खेत से है काटता वही
जो फ़स्ल कर्म की यहाँ बोता है आदमी
औरों के वास्ते ही जिया जिंदगी सदा
कब ख़ुद का भी हयात में होता है आदमी
बे-नूर शक़्ल और ये शाने झुके हुए
कितने मलाल साथ में ढोता है आदमी
जीने की फ़िक्र चैन न देती है ज़ीस्त में
मरने के बाद चैन से सोता है आदमी
होना वही है 'शाद' ख़ुदा चाहता है जो
फ़िर ख़्वाब क्यूँ जहाँ में सँजोता है आदमी
©विवेक'शाद'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




