जीतकर अहले जहां को
तुझको ना जीत पाया।
तो क्या जीत पाया हमनें
गम ये नहीं की कोशिश
मैंने नहीं की
बल्कि गम इस बात का है कि
हर कोशिश को नाकाम बनाया
तुमनें।
मैं गम हूं खुशी हूं तुम्हारे लिए
ये तुम्हारा दिल तो जनता ज़रूर है।
फिर तुम्हें किस बात की फितूर है
पास आती नहीं तुम्हें आख़िर
किसी बात का गुरूर है।
तू अच्छी तरह से जानती है कि
मुझे तेरे इश्क़ का शूरूर है
तू जाने बहार बेनज़ीर है
कैसे दूर जाऊं तुमसे
बांधी जो है तुमने मुझे
अपनी प्यार की जंजीर है।
अब बता दे तू इतना मुझे
ऐ मेरी हमनफस मेहरवां
क्या मेरा इश्क़ तुझे
कुबूल है..
क्या मेरा इश्क तुझे कुबूल है ...