देखो फिर ज़िन्दगी सो गई है यूँ ही अपनी तुरबत में।
मिलना फिर कभी बात होगी उसकी सारी फुरसत में
।।1।।
रोक ही ना पाओगे रोने से तुम खुद को उस घड़ी।
अपनी दुख्तर-ए-दिल उल्फ़त-ए-जाँ की रुख़सत में ।।2।।
आवाज देते देते तुम खुद ही थक जाओगे एक दिन।
क्योंकि सिलसिला होता नहीं मरने के बाद क़ुरबत में ।।3।।
ऐसे करो ना खर्च तुम अय्याशियों पर इस कदर से।
पूँछता कोई ना जब यह जिंदगी आ जाए गुरबत में ।।4।।
समझा दो कोई उसको खुल कर ना बोले इतना यहाँ।
शहर में पाबंदियाँ बड़ी है इज़हारे इश्क-ए-उल्फ़त में
।।5।।
सब कुछ तो छिन गया अब लेकर चलेंगे हम क्या।
इक जाँ ही बची है सिर्फ उसके ज़ुल्मत-ए-हुकूमत में ।।6।।
यकीन कर लो तुम उसका वह झूँठ ना कह रहा है।
नजूमी है बड़ा जीत तुम ना पाओगे उससे हुज्जत में ।।7।।
मिले थे जीने के लिए बस चार ही दिन ज़िन्दगी में।
दो तो तूने जी लिए अब बचे है दो ही इस मुद्दत में
।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







