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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

बन्धुता का ह्राश्र

बन्धुता का हाश्र

बंधुओ ने जब बंधुओं पर तान ली थी तलवार
अब होने को क्या रह गयीं थीं बात
ईर्ष्या ने मित्रभाव-प्रेमभाव मे जब लगा दी थी आग लालच ने कर दिया था आग मे घी का काज
अब होने को क्या रह गयीं थीं बात
बंधुओ ने जब बंधुओं पर तान ली थी तलवार
तृष्णा से छूट गया तृप्ति का हाथ
वासना से उपासना ही गयीं हार
अब होने को क्या रह गयी थी बात
बंधुओ ने जब बंधुओं पर तान ली थी तलवार
अपनो के खून से रंग लिए थे हाथ हर रिश्ता हर नाता धन का हुआ जब मोहताज
मंडी सजती है रिश्तों की खुले बाजार अब होने को क्या रह गयी थी बात
बंधुओ ने जब बंधुओं पर तान ली थी तलवार
होता जा रहा था बंधुता का ह्राश्र भाई के मीठे रिश्ते में पड़ गयी थी खटास
अब होने को क्या रह गयी थी बात
बंधुओ ने जब बंधुओं पर तान ली थी तलवार
✍अर्पिता पांडेय




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

Bahut badhiya, 🙏 pranam😊

श्रेयसी said

बिल्कुल सही कहा आपने बहुत सुंदर 👌👌🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

हर पंक्ति रिश्तों के विघटन की ऐसी तस्वीर खींचती है कि मन कांप उठे... कटु यथार्थ को बेहद मार्मिक ढंग से कह दिया! बंधुता पर जब तलवार उठे, तो इंसानियत खुद शर्मसार हो जाती है... लाजवाब अभिव्यक्ति

वन्दना सूद said

बहुत खूब लिखा आपने 👌👌आज की कड़वी सच्चाई

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