कर सोलह श्रृंगार,
सज-धज है तैयार,
काट रही घड़ियाँ,
लंबे इंतजार का,
देख रही रास्ता,
अपने प्यार का।
बिछा कर कलियाँ,
सजाई हैं गलियाँ,
खोल दिया है पट,
दिल के द्वार का,
देख रही रास्ता,
अपने प्यार का।
लौट आने का दिन,
सब सुना तुम बिन,
है उसे अब प्रतीक्षा,
अपने दिलदार का,
देख रही रास्ता,
अपने प्यार का।
नैन हुए पथरीले,
शूल चुभते कँटीले,
जी चुकी सदियाँ,
बैरी इंतजार का,
देख रही रास्ता,
अपने प्यार का।
🖊️सुभाष कुमार यादव