अब छोड़ दिया है हमने,
इलाज करना दिल की जख्मों का.....
सुना है
जख्म के दर्द से ज्यादा दर्द
भरती हुई जख्मों को
कुरेदने से होता है !
छोड़ दिया है जख्मों को
उनके हाल पे.....
दर्द अब मेरे घर का
मेहमाँ हो गया है।
आदत सी हो गयी है,
दर्द सहने की,
ना हो तो
खालीपन सा लगा रहता है।
खुले जख्मों पे
भिनभिनाती है वक्त की मक्खियाँ,
चूसती रहती है,
वो दर्द...
शायद उन्हें मिठा सा लगता है।
पता नहीं अब
कब दामन छूँटे दर्द से
दर्द जब हम सा बन चुका है।
----जबीन शेख