जो दर्द है,
कुछ अपनों का
तो कुछ खुदा का दिया है,
कुछ शारीरिक तो कुछ
मानसिक मिला है।
बीमारी दी खुदा ने
तो उसका इलाज भी दिया है,
पर कभी उसका असर मुझ पर
ना हुआ है।
कैसे बताऊं अपना मरज़ आपको?
एक ही नाम थोड़ी ना है।
और फिर जो कुछ भी है
खुद मुझे भी मालूम नहीं है।
ऐसा नहीं कि हमने कोई
मु'आलिज अपनाया ना,
जिस जिसके भी पास गए
कुछ वक्त बाद खुद उसी ने हमे ठुकराया।
पर कोई ग़म नहीं
खुदा के दिए इस मरज़ का
अपनों के दिए दर्द का,
बस कभी-कभी बात हद से ज़्यादा
बिगड़ जाती है तो भटक जाती हूं,
पर फिर संभाल लेती हूं क्योंकि
ये मरज़ कभी मुझे छोड़ेगा नहीं,
जब तक हूं तब तक रहेगा
और शायद मेरे जाने की वजह भी यही बनेगा।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️