👉 बह्र - बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
👉 वज़्न - 22 22 22 22 22 2
👉 अरकान - फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
जब तेरी यादों के झोंके आते हैं
आँखें रो देती हैं लब मुस्काते हैं
इस एक दिलासे पर ये दुनिया कायम है
गम और खुशियाँ ज़ीस्त में आते-जाते हैं
सारे के सारे कहाँ मुक़म्मल होते हैं
ख़्वाब कई आँखों में ही मर जाते हैं
पल-पल हर पल रँग बदलते लोगों में
कम हैं जो आख़िर तक साथ निभाते हैं
खा जाता है भीतर से ये इंसाँ को
यही वज़ह है इश्क़ से हम घबराते हैं
कुछ कचरे में रोटी फेंका करते हैं
कुछ कचरे से बीन के रोटी खाते हैं
वक़्त पड़े तो कोई काम नहीं आता
यूँ तो सारे ख़ुद को यार बताते हैं
माना जाने वाले लौट नहीं सकते
'शाद' मगर वो याद हमेशा आते हैं
©विवेक'शाद'