खुद निकलते खुद ही ढलते जा रहे हैं
चांद सूरज फर्ज है क्या हमें समझा रहे हैंI
आप जलते खूब गलते हैं दुनिया के वास्ते
सिर्फ हमसे एक लोटा नीर ही बस पा रहे हैंI
बांटते हैं चांदनी और रोशनी का नूर खुलके
दास ये सारा अंधेरा स्वयं खुद वो खा रहे हैंI
खुद के लिए जीना यहाँ क्या भला है जिंदगी
जिंदगी का अर्थ सच्चा वो हमे समझा रहे हैं।