चला एक पथिक
चला एक पथिक अपनी राह
राह से राह बनती गई
हर राह पर एक नया रिश्ता जुड़ता गया
उम्र के साथ-साथ कुटुम्ब भी बढ़ता चला गया
यूँ हीं राहें मिलती गईं,गुज़रती रहीं
चलते चलते एहसास ही नहीं रहा
क्या खो दिया और क्या पाया
उम्र के आखिरी पड़ाव में आकर आभास हुआ
न हम अपनों को समय दे पाए
न ही आज हमें कोई वक़्त दे पा रहा है
इतने बड़े कुटुम्ब में भी आज हम अकेले हैं
अब महसूस हो रहा है
कि तब वो भी इंतज़ार करते होंगे हमारा
आज हमें इंतज़ार रहता है जिनका
उम्र का आखिरी पड़ाव ही हमें क्यों जताता है
कि हम अपने कितने फर्ज पूरे नहीं कर पाए
पीढ़ी दर पीढ़ी क्यों यही सोचना है
कि यही संसार की रीत है
भावनाओं को भूल हम स्वार्थी हो जाते हैं
तो क्यों अंकुश प्रकृति की व्यवस्था पर लगाते हैं ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




