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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

चला एक पथिक

चला एक पथिक
चला एक पथिक अपनी राह
राह से राह बनती गई
हर राह पर एक नया रिश्ता जुड़ता गया
उम्र के साथ-साथ कुटुम्ब भी बढ़ता चला गया
यूँ हीं राहें मिलती गईं,गुज़रती रहीं
चलते चलते एहसास ही नहीं रहा
क्या खो दिया और क्या पाया

उम्र के आखिरी पड़ाव में आकर आभास हुआ
न हम अपनों को समय दे पाए
न ही आज हमें कोई वक़्त दे पा रहा है
इतने बड़े कुटुम्ब में भी आज हम अकेले हैं
अब महसूस हो रहा है
कि तब वो भी इंतज़ार करते होंगे हमारा
आज हमें इंतज़ार रहता है जिनका

उम्र का आखिरी पड़ाव ही हमें क्यों जताता है
कि हम अपने कितने फर्ज पूरे नहीं कर पाए
पीढ़ी दर पीढ़ी क्यों यही सोचना है
कि यही संसार की रीत है
भावनाओं को भूल हम स्वार्थी हो जाते हैं
तो क्यों अंकुश प्रकृति की व्यवस्था पर लगाते हैं ..
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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Lekhram Yadav said

जब यही संसार की रीत है तो पथिक को अकेला भी चलना पड़ेगा और अकेलेपन का दंश भी उसे ही भोगना पढ़ेगा। प्रस्तुति अच्छी है। चलते रहिएगा इस पध पर।

वन्दना सूद replied

जी sir 🙏बिल्कुल सही है हम सब राहीं हैं

Bhushan Saahu said

Jivan ki raah hi kathin ha..pr chlna isi ka naam ha.

वन्दना सूद replied

सही कहा sir चलना तो पड़ता ही है

रमेश चंद्र said

बुढ़ापा जीवन का सबसे कठिन समय है बहुत सुंदर रचना

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत सुन्दर एवं प्रसंसनीय रचना महोदया प्रणाम स्वीकार करें

वन्दना सूद replied

प्रणाम 🙏

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