एक मजदूर और उसकी ( १ ) बीबी बच्चें हैं.
बेचारे बहुत सीधे सादे बड़े अच्छे हैं
एक गली के झोपड़ी में वे लोग रह रहे
दुख कष्ट दर्द दोनों मिल कर सह रहे
मजदूर की बीबी पांच छे घर के बर्तन माझने जाती है
जब महीना मरता है तब कुछ थोड़े पैसे लाती है
मजदूर भी इटा सीमेंट ढोता बड़ा मेहनत करता है
इस तरह वह अपने परिवार का पेट भरता है
समय उनका इसी तरह निकल रहा
गुजर बसर उन लोगों का जैसे - तैसे चल रहा
एक दिन मजदूर को ठेकेदार ने काम से निकाल दिया
उस बेचारे को बहुत मुश्किल में डाल दिया
वह वेल्ला हो गया उसका काम चला नहीं
उसका घर का चूल्हा भी तीन चार दिन से जला नहीं
उसके दो बच्चें रात में पानी पी पी कर सो रहे
ये देख दोनों मिया बीबी सुबक सुबक रो रहे
उनके झोपड़ी में कोई आता जाता नहीं
अड़ोस पड़ोस के लागों को भी कुछ पता नहीं
उनकी ऐसी दुख किसी ने देखा नहीं
किसी भी पत्रकार ने ये खबर लिखा नहीं
किसी भी पत्रकार ने ये खबर लिखा नहीं......
----नेत्र प्रसाद गौतम