दिल किसी का भी मैंने दुखाया नहीं,
उम्र भर की सबके लिए ही दुआ।
अपने बोलों से कभी किसी को रुलाया नहीं,
फिर मिली हमको बदले मे क्यों बद्दुआ।
जिंदगी बन गयी है धुंआ ही धुंआ,
एक छोटा सा संसार हमने बसाया।
छोटे -छोटे से सपनों को हमने सजाया,
अपनी आँखों मे आशाओं के दीपक जलाये।
हजारों उम्मीदों को पलकों पे हमने सजाया,
बिखर गयीं उम्मीदें, बुझ गये दीप सारे।
अब तो थमता नहीं अश्कों का सिलसिला,
जिंदगी बन गयी अब एक सज़ा।
साँसे थमती नहीं, वक़्त रुकता नहीं,
सूना लगने लगा है ये सारा जहाँ।
हर तरफ छा गया है धुँआ ही धुँआ।
धुंध को चीरकर, दूर से ही कहीं नज़र आये
तो सही रौशनी की किरण।
जी उठूंगी मै फिर से,
ख्वाब आँखों मे फिर से सज़ा लूंगी मै।
उम्मीद दिल मै फिर से जगा लूंगी मै,
जिंदगी बन जाएगी मेरी भी दुआ।
हमको मिल जाएगी, फिर सभी की दुआ।
— सरिता पाठक