याद करके मुस्कुराई बचपन के पल।
सहेलियो के साथ में बिताए हुए कल।।
वक्त बदला गुम हो गए उन्नत मिजाज।
जो खोजकर लाते थे मुसीबतो के हल।।
भूलती नही कुछ एक साथी करीब के।
जिनकी भूमिका अहम मचाए हलचल।।
विषय कोई भी हो 'उपदेश' एक जैसे।
रुकती नही थी चलती रहती थी गल।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद