जीवन चाहे कितना कठिन हो,
फिर भी जीना पढ़ता है।
जीवन एक संघर्ष है उससे,
सबको लड़ना पड़ता है।
जीवन में मिले गरल तो,
खुद ही पीना पड़ता है।
पथ के काँटों को चुनकर,
खुद आगे बढ़ना पढ़ता है।
चाहे चुभन हो पैरों में,
फिर भी हँसना पढ़ता है।
संघर्ष करके ही जीवन से,
सफलता का वंदन करता है।
लक्ष्य कठिन हो चाहे कितना,
अर्जुन सा सधना पड़ता है।
लगा तीर निशाने पर फिर,
जीत का वरण वो करता है।
जो जीवन का गरल है पीते,
उनको ही अमृत मिलता है।
मेहनत के जल से उनके,
बंजर में फूल खिलता है।
कुछ करने की चाह हो जिसमें,
पत्थर से झरना बहता है।
अटल इरादे,दृढ़संकल्प से,
जीत का सेहरा बॅधता है।
ये स्वरचित एवं मौलिक, अप्रकाशित रचना है।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड