तुम्हारी नीयत —
मुझे पालतू बनाने की थी,
बुलाने पर दुम हिलाने की,
और मेरे भौंकने को प्रेम कह देने की।
तुम्हें आदत है
कमज़ोरियों से खेलकर उन्हें वफ़ा का नाम देने की,
और फिर कहना —
“देखो, ये तो मेरी मुट्ठी में है।”
पर सुनो —
मैं शेरनी हूँ, जन्म से
न पालती, न पलती, न झुकती —
ना तुम्हारे शब्दों से,
ना तुम्हारे चुप्पियों से।
तुमने मुझमें वफ़ा देखी,
मैंने तुम्हारी नीयत में शिकारी की भूख।
तुमने मेरी आँखों में आँसू तलाशे,
मैंने तुम्हारी आँखों में शिकंजा देखा।
तुम चाहते थे मैं रहूँ —
तुम्हारे पैरों के पास,
तुम्हारे इशारों पर,
तुम्हारी दुनिया में —
एक ‘कम’ इंसान बनकर।
लेकिन अफ़सोस,
मैं जंगल की बेटी हूँ —
और तुम्हारा शहर मेरे लिए सिर्फ़ एक पिंजरा है।
अब तुम चीखो,
अब तुम मुझे “अहंकारी”, “बदचलन”, “जंगलपन” कहो —
पर मैं वही रहूँगी —
शेरनी।
न रुकने वाली।
न रुलाने वाली।
न लौटने वाली।
— शारदा
(जिसे तुमने समझा पालतू,
और वो जन्म से जंगली है — आज़ाद और गर्वित)