विरह वेदना
राधे और श्याम की...
मेरा आंगन सुना है तेरे बिन
तू तुलसी बन आ जा प्रिये ...!
आंखें तरस रही तेरे दर्शन को
तू आंख का तारा बन आ जा प्रिये..!
मन की व्यथा है मिलन की
तू राहगीर बन टकरा जा प्रिये ...!
सूरज अब ढलने को हैं
विरह वेदना बढ़ने को है
सांझ में दीपक की तरह
एक बार दरस दिखा जा प्रिये ...!
-तुलसी