छुपाया जो हमने राज-ए-उल्फ़त तो बुरा मान गये
रुह -ए-एहसासात समझ न पाए और बुरा मान गए
ख़ामोशी भी इक जुबांँ होती है नासमझ क्या जानें
पढ़ न पाए मेरी आंखों को और बुरा मान गए
खफ़ा थी मैं कब से और थे वो हीं बेज़ार बहुत
ख़ुद हीं मुझे रुला कर ख़ुद हीं बुरा मान गए