बुझे चिराग हैं जो उनकी कदर नहीं होती
अंधेरी रात की तो जल्दी सहर नहीं होती I
हमारे साथ ही क्यों है मजाक दुनिया का
सभी से हंस के मिले पर गुजर नहीं होती I
हरेक तरहा के हैं इल्जाम अपने सर आए
खता मुआफी की बरहम नजर नहीं होती I
वफा के नाम पे क्या क्या फरेब खाते रहे
था बेहतर दास मोहब्बत अगर नहीं होती I
किसी का क्या भला बिगाड़ा है हमने यहां
क्यूँ किसी की दास सहती नजर नहीं होती।