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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

माफ़ करना मासूमों

मंच महीने की
दो मासूम किलकारियों को
बदल दिया
देर तक नेपथ्य में गूंजती चीखों में..
अभी ठीक से जग ही नहीं पाई थीं कलियां,
अभी तो मां के आंचल की गंध को ही कुछ पहचाना होगा..
और जीने की उम्मीद ओर जोश में हाथ पांव मारती हवा में उड़ने की कोशिश करती..
और आंखे देखने को मिचमिचा रही थी
सुबह के उजाले की रोशनियां..
अभी अभी तेजी से चलती हुई सांसे
फेफड़ों को देने ही लगी थी आकार..
अभी कलियों में रंग और खुशबू आने
को कसमसा ही रहा था,
कि पिता ही काल का क्रूर पंजा लिए
अपनी समस्त वीभत्स और पाशविकता को
जकड़े हुए धरा पर पटककर दहला दिया सबका हृदय अंतरस्थल तक...
अभी वही मानसिकता को ढोते हम सुधरने को किसी भी तरह तैयार नहीं..
हम गुनाहगार है..
ऐ! मासूम कलियों
हम आपके लिए बस कांटे भर नहीं है..हम पाषाण हृदय और पशुता लिए पशु ही है..


एक पिता के अपनी दो बेटियों को जमीन पर पटक पटक कर मार देने पर व्यथित हृदय के उदगार...

पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

वन्दना सूद said

Heart touching storyline 😢

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

It was never acceptable, why we are like this...this is brutality...this should never happen to anyone...what is going with the human beings...something is messing with the brains...aapne sundarta se prastut kiya hai lekin aisa koi kese kar sakta hai kisi k bhi sath ..

पवन कुमार "क्षितिज" said

sahi kaha Ashok ji, इंसान अपने mind पर control loos karta ja raha hai..

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