मंच महीने की
दो मासूम किलकारियों को
बदल दिया
देर तक नेपथ्य में गूंजती चीखों में..
अभी ठीक से जग ही नहीं पाई थीं कलियां,
अभी तो मां के आंचल की गंध को ही कुछ पहचाना होगा..
और जीने की उम्मीद ओर जोश में हाथ पांव मारती हवा में उड़ने की कोशिश करती..
और आंखे देखने को मिचमिचा रही थी
सुबह के उजाले की रोशनियां..
अभी अभी तेजी से चलती हुई सांसे
फेफड़ों को देने ही लगी थी आकार..
अभी कलियों में रंग और खुशबू आने
को कसमसा ही रहा था,
कि पिता ही काल का क्रूर पंजा लिए
अपनी समस्त वीभत्स और पाशविकता को
जकड़े हुए धरा पर पटककर दहला दिया सबका हृदय अंतरस्थल तक...
अभी वही मानसिकता को ढोते हम सुधरने को किसी भी तरह तैयार नहीं..
हम गुनाहगार है..
ऐ! मासूम कलियों
हम आपके लिए बस कांटे भर नहीं है..हम पाषाण हृदय और पशुता लिए पशु ही है..
एक पिता के अपनी दो बेटियों को जमीन पर पटक पटक कर मार देने पर व्यथित हृदय के उदगार...
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




