बस इतनी सी है ये ज़िन्दगी
पलक झपकने तक की है ये ज़िन्दगी
फिर भी तन पर इतना गुमान है
हवा के झोंके से बदल जाती है ये ज़िन्दगी
फिर भी साँसों पर इतना गुमान है
जल की बूँदों से बह सकती है ये ज़िन्दगी
फिर भी भावनाओं पर इतना गुमान है
आग की एक चिंगारी से जल जाती है ये ज़िन्दगी
फिर भी क्रोध पर इतना गुमान है
प्रकृति की एक ललकार से खत्म हो जाती है ये ज़िन्दगी
फिर भी अहम् पर इतना गुमान है
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है