यहां हमें न कोई, नस्ल–ए–इंसाँ मिला..
बहुत तलाश किया, मगर बस धुआँ मिला..।
कुछ ख़ास वज़ह तो, न मालूम थी मगर..
कभी अपनों से, कभी गैरों से परेशाँ मिला..।
लौट–लौट कर आता रहा, उनका ख़्याल भी,
उसे सूकूँ मिलता, ऐसा ना उसको ज़हां मिला..।
इस कदर है भीड़ कि, न ज़मीं दिखती न आसमां..
फिर भी ये क्या कि, हर आदमी बस तन्हा मिला..।
तलाश–ए–उम्मीद में ही, कट गई ज़िंदगी हमारी..
इस शहर में हमें न कोई, इक यार-ए-मेहरबाँ मिला..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







