जो लहजे में सख़्त कड़े होते हैँ
अक्सर वही इंसान खरे होते हैं
जिन्हें आदत हो चापलूसी की
वो बहुत चिकने घड़े होते हैं ।
चंद लफ्ज़ों से जरा बहला सकते हैं
मरहम लगा जख्म सहला सकते हैं
खुद सहन करना है जो भी मिला है
पराये दर्द कहाँ गैर उठा सकते हैं।
दूध फट न जाए उसे उबाल कर रखते हैं
रिश्ते बड़े नाजुक हैं संभाल कर रखते हैंI
गिर गिर के संभल रहा हूं इन दिनों
खुद से मैं खुद लड़ रहा हूं इन दिनों
निखर जाए मेरा जमीर और ज्यादा
दिली
आग में तप रहा हूं इन दिनों।
माफ किया है फिर कैसी अदावत है
खामोश रहते हैं ये कैसी मुहब्बत है
शिकवा है ना गिला है दास अब तो
ये कोई इनायत है या शिकायत है।
इस शहर का गर यही दस्तूर है
हाथ का पत्थर तो हमें मंजूर है
हम अमन के वास्ते मर जायेंगे
आपकी इनायत अगर भरपूर है।
जहां बेबसी को सहारे मिले
वहां जिंदगी के हवाले मिले
मोहब्बत के आंगन में दास
भरी चांदनी के उजाले मिले।
यादें रह जाती हैं दास सिर्फ जानेवालों की
आने वालों के लिए अतीत का अहसास बनकरI
हमको तो अच्छी लगती है सुलझी सुलझी बात
लोग यहां अक्सर करते हैं उलझी उलझी बात।
पहले तो सपने दिखाता है
और फिर उल्लू बनाता है
गिड़गिड़ाता है सामने मगर
पीठ पे वो खंजर चलाता है I
महलों में बसे या फिर वीरान में रहें
किसी भी स्वर्ण के तख्ते ताज में रहें
आदमी भगवान से ऊपर नहीं होता
बेहतर सभी तो अपनी औकात में रहें।
पंखुड़ी में ये गुलाब है जब तक
रहता कायम शबाब है तब तक
मेज पर खिल गया जो गुलदस्ता
महकेगा सिर्फ एक दिन शब तक।
जितने ज्यादा रिवाज बदले हैं
उतने मौसम केमिजाज बदले हैं
खुद को बदला कहाँ दास हमने
महज हमने तो लिबास बदले हैँ I
कोई रोग जिन्दगी में कभी जरूरी है दास
सिर्फ सेहत के सहारे जिन्दगी बेरंग लगेगी I
हर इंसान यहां पत्थर है पत्थर हर इन्सान है
पत्थर हैं दिल पत्थर हैं जिगर पत्थर ये हर जान है ।
जिसमें गुल खिलते हैं महकते बिखरते हैं वो
चमनतो आशियाना बहारों का फिजाओं का ।