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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

बिखरे से जजबात

जो लहजे में सख़्त कड़े होते हैँ
अक्सर वही इंसान खरे होते हैं
जिन्हें आदत हो चापलूसी की
वो बहुत चिकने घड़े होते हैं ।

चंद लफ्ज़ों से जरा बहला सकते हैं
मरहम लगा जख्म सहला सकते हैं
खुद सहन करना है जो भी मिला है
पराये दर्द कहाँ गैर उठा सकते हैं।

दूध फट न जाए उसे उबाल कर रखते हैं
रिश्ते बड़े नाजुक हैं संभाल कर रखते हैंI

गिर गिर के संभल रहा हूं इन दिनों
खुद से मैं खुद लड़ रहा हूं इन दिनों
निखर जाए मेरा जमीर और ज्यादा
दिली
आग में तप रहा हूं इन दिनों।

माफ किया है फिर कैसी अदावत है
खामोश रहते हैं ये कैसी मुहब्बत है
शिकवा है ना गिला है दास अब तो
ये कोई इनायत है या शिकायत है।

इस शहर का गर यही दस्तूर है
हाथ का पत्थर तो हमें मंजूर है
हम अमन के वास्ते मर जायेंगे
आपकी इनायत अगर भरपूर है।

जहां बेबसी को सहारे मिले
वहां जिंदगी के हवाले मिले
मोहब्बत के आंगन में दास
भरी चांदनी के उजाले मिले।


यादें रह जाती हैं दास सिर्फ जानेवालों की
आने वालों के लिए अतीत का अहसास बनकरI

हमको तो अच्छी लगती है सुलझी सुलझी बात
लोग यहां अक्सर करते हैं उलझी उलझी बात।

पहले तो सपने दिखाता है
और फिर उल्लू बनाता है
गिड़गिड़ाता है सामने मगर
पीठ पे वो खंजर चलाता है I

महलों में बसे या फिर वीरान में रहें
किसी भी स्वर्ण के तख्ते ताज में रहें
आदमी भगवान से ऊपर नहीं होता
बेहतर सभी तो अपनी औकात में रहें।

पंखुड़ी में ये गुलाब है जब तक
रहता कायम शबाब है तब तक
मेज पर खिल गया जो गुलदस्ता
महकेगा सिर्फ एक दिन शब तक।


जितने ज्यादा रिवाज बदले हैं
उतने मौसम केमिजाज बदले हैं
खुद को बदला कहाँ दास हमने
महज हमने तो लिबास बदले हैँ I

कोई रोग जिन्दगी में कभी जरूरी है दास
सिर्फ सेहत के सहारे जिन्दगी बेरंग लगेगी I

हर इंसान यहां पत्थर है पत्थर हर इन्सान है
पत्थर हैं दिल पत्थर हैं जिगर पत्थर ये हर जान है ।

जिसमें गुल खिलते हैं महकते बिखरते हैं वो
चमनतो आशियाना बहारों का फिजाओं का ।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

सुभाष कुमार यादव said

बेहद खूबसूरत। मान गए उस्ताद आपकी सोच, आपके विचार, आपकी कलम, आपकी लेखनी को सादर प्रणाम।👌👌🙏🙏

वन्दना सूद said

कोई रोग जिन्दगी में कभी जरूरी है दास
सिर्फ सेहत के सहारे जिन्दगी बेरंग लगेगी I😂sir क्यों मुसीबत गले लगाने की बात करते हैं

शिवचरण दास said

आपका बहुत शुक्रिया यादव जी. .. आपको भी प्रणाम

शिवचरण दास said

शुक्रिया वंदना जी. ..कम से कम कोई हाल तो पूछेगा इस बहाने

Lekhram Yadav said

वाह वाह क्या बात है, बहुत खूबसूरत रचना, आपको सादर नमस्कार

शिवचरण दास replied

आपकी इनायत शुक्रिया नमन यादव जी

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