स्वप्न छले जाते है हर दिन
सेवाभावी बातो से,
पूछो मेहनत क्या? उससे जो
न सोया कितनी रातों से,
जो बाते थी विश्व गुरू की
जाने कहा फिर चली गई,
दुर्बल नीव हुई नीरज(कमल) की
जो जल ही जल में गली गई,
बुझा न देना तुम सब मिल के
ये सत्य अग्नि की है ज्वाला,
तुम ही मारो बाण पीठ फिर
क्यों देते श्रद्धा की ये माला,
क्षण भर बस यह सोच लगावों
अन्नदाता क्यों तरसे जी,
जो देता दाना पानी उन्ही पे
क्यों गोला बरसे जी,
जो शासक अन्यायि थे
उनके मंत्रो को न जाप करो,
स्वर्ग समान यह देश हमारा
इसको न अभिशाप करो,
- नारायण दोगाया
( राहड़कोट, जिला~ खरगोन,मप्र )