तेरे नाम से इतना प्यार,
कि नामाराशि पसन्द आने लगे।
रास्ते की तरफ देखता,
झूमते मुसाफिर नजर आने लगे।
धूप आई फिर गई कहाँ,
छांव लौटी होंठ कपकपाने लगे।
झूठी मोहब्बत में रफ्तार हैं,
असली मे आँख डबडबाने लगे।
तुझ पर गर्व क्यों न करूँ,
गवाही देने रिश्तेदार आने लगे।
चर्चा तेरे नाम जे साथ मेरी,
मंद मंद 'उपदेश' मुस्कराने लगे।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद