आया,
बिल्कुल वैसे जैसे ऑफ़र की घंटी आती है —
कुछ दिन फ्री, फिर चार्जेबल!
मैं फ्री ट्रायल में दिल दे बैठी
और तू —
कंडीशन पढ़े बिना
इस्तेमाल करके लौट गया।
तू कहता है, “मैंने कुछ किया ही नहीं…”
बिल्कुल सही कहा —
तूने कभी कुछ किया ही नहीं!
न निभाया, न समझा, न रोका, न रुका —
बस चलता रहा,
जैसे गूगल मैप में रास्ता बदलता है —
“Turn left when she stops crying.”
“Continue straight when she starts questioning.”
तेरे लिए इश्क़
किसी ऐप की तरह था —
जब जगह कम लगी,
डिलीट कर दिया।
पर मेरे लिए?
मेरे लिए वो सिसकी थी,
जो रात को तकिये में दबकर मरती रही।
वो इंतज़ार था,
जो रूटीन बन गया —
तेरे ऑनलाइन आने का।
और अब?
अब तू कहता है —
“तू बहुत इमोशनल थी यार!”
हां!
मैं थी।
मैं अब भी हूं।
पर अब मेरी भावनाएं तेरा गंदा आईना नहीं धोएँगी।
अब मैं टूटूँगी नहीं,
बल्कि खिलूँगी —
तेरी बेमुरव्वत यादों के विरुद्ध।
तेरी मोहब्बत अब मेरी कविता बन चुकी है —
हर शब्द में आग,
हर पंक्ति में स्वाभिमान,
और हर विराम पर
तेरे जैसे नामों के लिए
एक मौन तिरस्कार।