तुम समझते हो —
मेरा जीवन
एक मिट्टी की गुड़िया है,
जिसे जैसे चाहो,
तोड़ दो, मरोड़ दो,
या प्रेम का नाम देकर
धीरे से तोड़ो भीतर से।
पर सुनो —
मैं उस खामोशी की संतान हूँ
जो आँधियों में पली,
जिसने हर अपमान को
अपने भीतर
एक चुपचाप कविता की तरह रखा।
मेरे जीवन की धड़कनें
तुम्हारी मुहर की मोहताज नहीं —
मैंने अपनी साँसों को
कभी नामों, कभी रिश्तों,
तो कभी ईश्वर से भी आज़ाद किया है।
तुम्हारे हाथ में
बस भ्रम है —
कि तुम मुझे छू सकते हो,
मुझे बदल सकते हो
या मुझे ख़त्म।
पर मैं तो
हर टूटन में एक नई भाषा बनती हूँ —
हर मरहम के पहले
एक घाव बनती हूँ,
और फिर एक स्त्री —
जो अपने ही रक्त से
एक नया जन्म लिखती है।
मैं एक बार नहीं,
सौ बार टूट चुकी हूँ,
पर हर बार
मैंने अपने ही टूटे शब्दों से
एक अमर कविता बुनी है।
तुम नहीं जानते —
तोड़ना और मरोड़ना
तुम्हारे बस की बात नहीं,
क्योंकि
मैं अब तुम्हारी चीज़ नहीं,
मैं अब “मैं” हूँ —
एक निर्वासन से निकली हुई,
चुप, किन्तु अग्निमय।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




