रंग हर किसी पर अपना जमाते हैं बहुत ज्यादा
लोग बोलते कम मगर चिल्लाते हैं बहुत ज्यादा
एक नई नवेली दुल्हन की तरहा अब पुराने यार
हँसते हैं जरा कम खुद मुस्कराते हैं बहुत ज्यादा
हाथ में मोबाईल आते ही हमारे लाड़ले से बच्चे
खुद रोते नहीं माँ बाप को रुलाते हैं बहुत ज्यादा
हम तो नये मिजाज और नये ज़माने के शायर हैं
पढ़ते लिखते कम और गुनगुनाते हैं बहुत ज्यादा
वक्त पे जोर किसी का नहीं चलता है दुनियां में
हर घड़ी के छोटे कांटे ही भागते हैं बहुत ज्यादा
खुद हमने पी लिया है मोहब्बत में जहरी प्याला
दास मरते नहीं हैं पर लड़खड़ाते हैं बहुत ज्यादा
अब किससे गिला हमको तो किससे है शिकवा
सब ये हमारी खता ही दिखलाते हैं बहुत ज्यादा II

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




