वक्त का अनमोल नगीना
चाहतें बेअसर हो गईं,
जब चाहतें बेशुमार हो गईं।
वक्त ने दिया एक अनमोल नगीना,
जिसे हाथों में लेते ही
सारा जीवन उसके नाम कर दिया,
अपना सुख दुख सब उसके हवाले कर दिया।
फिर वक्त ने एक सौदा किया,
और बदले में तुमसे सब कुछ छीन लिया।
ना आँखों में आँसू बचे,ना चेहरे पर मुस्कान
ना अपनों का साथ रहा,
ना अनजानों को अपना बना पाया।
पर तुमने खामोशी से यह सब स्वीकार किया।
तो फिर आज क्यों
वक्त की मार से डरते हो?
जीवन की यातनाओं से घबराते हो?
उसके चेहरे को देख,अपने लिए
सारी चाहतें क्यों खत्म नहीं कर देते हो?
क्यों?जताते हो वक्त को
क्यों?चाहते हो वक्त से कि मेरे अनमोल नगीने का मोल फिर से आँक दो.
वन्दना सूद
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