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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

इक़बाल सिंह “राशा” की कविता “ जिसे तू भूल गया”

कल
मैं एक उजली सी चुप्पी पर चला गया —
जहाँ धूप किसी अधूरी प्रार्थना की तरह
पत्तों पर थमी हुई थी।

हवा वहाँ स्त्री थी —
काजल सी कोमल,
भीतर की रेखाओं में बहती हुई,
जो कहती कुछ नहीं थी,
पर हर थकान
अपने उड़ते आँचल से धो देती थी।

एक बेल
टिक गई मेरी हथेली पर —
उसकी चुप्पी में
एक माँ की वो झुर्री थी
जिसमें नींदें, कहानियाँ और
अनकहे भय साथ पलते हैं।

एक तितली
पंख फैलाए मेरे कंधे पर उतरी,
उसके रंग
जैसे किसी अधूरे ख़त के आँसू सूखकर रह गए हों।
वो बोली नहीं,
पर मेरे कान में एक सांस आई:
“जिसे तू भूल गया,
वो हर सुबह ओस बनकर
तेरे पाँव चूमती रही।”

झील,
एक स्त्री ही थी वो भी —
नील का मौन ओढ़े,
अंतःकरण में थिरकती।
मैंने उसमें झाँका,
और देखा —
वो चेहरा जिसे मैंने बरसों पहले खो दिया था,
अब लहरों की सलवटों में
मुझे क्षमा कर रहा था।

सूरज उस शाम
डूबा नहीं था —
वो बस मेरी आत्मा के पीछे-पीछे
किसी बिछड़ी स्त्री-सा चला गया था,
जो कहे बिना विदा लेती है,
पर उसकी खुशबू
तकियों में रह जाती है।

जब मैं लौटा —
मेरे जूतों में रेत थी,
और रेत में
एक अधूरी कविता पड़ी थी —
जैसे किसी हवा ने
उसे मेरे नाम से पहले
मेरे इंतज़ार में लिख छोड़ा हो।

इक़बाल सिंह “राशा”
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना। भाव एवं शिल्प सौंदर्य के साथ दृश्य बिम्ब का सुंदर प्रयोग। 👌👌🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

ये कविता तो जैसे खुद एक यात्रा है—इतनी सजीव, इतनी संवेदनशील, जैसे शब्द खुद चलकर पाठक के पास आते हैं। आपके हर बिम्ब में एक गहरी नमी है, जो मन को छूकर चुप करा देती है।
क्या कहें, बस इतना कि—ये रचना पढ़कर भीतर कोई कोना देर तक भीगता रहता है।
अद्भुत! 💫
आदरणीय को सादर प्रणाम

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद सुभाष जी
सादर प्रणाम

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद अशोक जी
सादर प्रणाम 🙏

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