बचपन के कीमती पल
समय की रफ़्तार कभी थमती नहीं है
वो तो अपनी धुन में चलता रहता है
कुछ पल तुम्हें ही समय से माँगने पड़ेंगे
अपनी झोली से कुछ यादों को बाहर निकालना पड़ेगा
चढ़ते सूरज से आँखें मिलाना
क़तारों में उड़ते पक्षियों को गिनना
पिट्ठूग्राम ,गिली डंडा खेलना
शनिवार वाले दिन तेल में झाँक कर सिक्का डालना
रात को तारों में सप्तऋषि ढूँढना
हम हर अच्छे बुरे पल याद रखते हैं
पर ये बचपन के क़ीमती पलों को जीना भूल जाते हैं
बचपन ऐसी उम्र है जो हर उम्र को उत्साह से भर देती है
बचपन अगर जिन्दा रहे तो कितने ही गिले शिकवे बचपने की तरह ही निकल जाते हैं ..
वन्दना सूद