हमने कहा — अब बस बहुत हुआ,
दिल तोड़ा, नाता भी तोड़ा,
बोले — अब न देखेंगे चेहरा,
किया नंबर भी ब्लॉक,
और सोशल मीडिया से किया साफ़-साफ़ झाड़ू-पोछा।
पर मन बोला — अरे, रुको भैया!
थोड़ा सा सोचना ज़रूरी है,
“क्या उसने मिस किया होगा?”
“क्या मैंने कुछ ज़्यादा कह दिया?”
— ये सब सोच सोच के,
फिर से बँध गए उसी की गाड़ी में,
फिर से बैठ गए ‘पास्ट की बेंच’ पर।
उम्मीदों की रज़ाई ओढ़ी,
भावनाओं की तकिया ली,
डर की चाय बनाई,
और बोले —
“मुझे तो बस closure चाहिए!”
अरे भैया!
ये closure-closure कुछ नहीं होता,
ये मन का illusion होता।
जिससे मुक्ति पानी है,
उसे सोच-सोच के मत चबाओ!
जैसे ग़म के लड्डू —
जो मीठे कम, भारी ज़्यादा होते हैं।
तो करना ये है —
जो सोचें आएं, उन्हें देखो,
ना लड़ो, ना उलझो —
बस कह दो — “ठीक है बेटा, अब निकल लो!”
और धीरे-धीरे,
उन धागों को सुई से नहीं,
अपने होश से उधेड़ो।
क्योंकि आख़िर में,
सिर्फ़ आत्मा की स्वतंत्रता है,
जो हमें सही दिशा दिखाती है।
बाक़ी सब तो —
दिल के पुराने स्टेटस हैं — seen but not needed!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




