घूम फिर कर तितली बाग में आती है
फूलों के ऊपर वह बैठ जाती है
कभी इस पार कभी उस पार
ढूंढती रहती वह फूलों हजार
फूल पर ही बैठ कर फूल का रस पीती है
बड़ी सुंदर दिखती आराम से जीती है
उसके पास जा कर उसे तंग किया तो
बेकार में यूंही उसे दुख दिया तो
एकदम जल्दी घुसे में आती है
बाद में वह फिर उड़ कर जाती है
बाद में वह फिर उड़ कर जाती है.......
----नेत्र प्रसाद गौतम